कहीं पे धुप के चादर बिछा के बैठ गए,
कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए|
जले जो रेत में तलवे तो हमने ये देखा,
बहुत से लोग वहीँ छटपटा के बैठ गए|
खड़े हुए थे आलावो की आंच लाने को,
सब अपनी अपनी हवेली जला के बैठ गए|
दुकानदार तो मेले में लूट गये यारो,
तमाशबीन दुकान लगा के बैठ गए|
लहू लुहान नजारों का जिक्र आया तो,
शरीफ लोग उठ दूर जा के बैठ गए|
ये सोच कर कि दुर्ख्तों में छाँव होती है,
यहाँ बाबुल के साथ में आके बैठ गए|
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